“अब नदी बनते हैं”
ये झरना देखो ये दुनिया इसे देखने आती है, इतनी कठनाइयों को पार कर के मुसीबतें झेल कर। दुनिया हमेशा से ही गिरती हुई शय का मज़ा लेती रही हैं, उसको मज़ा आता है गिरती शय को खूबसूरत बताने मे, तभी दुनिया मे हम गिरते है। हम पहले झुकना सीखते हैं फिर धीरे धीरे गिरने लगते है। तभी तो प्यार मे हमेशा गिरना बोला जाता है, मगर मैं कभी गिरा नहीं सिर्फ झुका और जब गिरने लगा तो फिर खुद को संभाला, ‘न कभी तुम्हे गिरने दिया’। हम प्यार मे उठे बहुत उठे इस पहाड़ की मानिंद की लोगो को यकीन करने के लिए इतनी उचाई तक आना पड़ाता है। वरना लोग हमें गलत ठहरा देते हैं, पर अब भी तुम उसी ऊंचाई पर हो और मैं गिर रहा हूँ या यूँ कहूँ की गिराया जा रहा हूँ या गिरना पड़ रहा है क्योंकि तुम इतनी ऊंचाई पर आ कर भूल गयी हो पहाड़ और याद रख रही हो सिर्फ ऊंचाई और मैं तुम्हे याद दिलाना चाहता हूँ पहाड़ की।
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ये आवाज़ सुन रही हो ये मेरे गिरने की आवाज़ है जो न चाहते हुए भी मेरे मन मे दिन रात रहती है, पर अभी मैं खुश हूँ क्योंकि तुम पहाड़ हो। मैं गिर रहा हूँ, इसका दुख तो है पर जियादा दुख ये है की मैं गिर कर जम गया हूँ ठहर गया हूँ, मेरा दिल दिमाग सब जम गया है इस बर्फ की तरह, इसीलिए मैं मनाली आया ताकी देख सकूँ अपना मन, क्योंकि अपने कमरे मैं बैठे बैठे मैं बस पहाड़ तक ही पहुँच पा रहा था और चिड़चिडा कर वापिस आ जाता था।
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” गिरने के बाद जमना बहुत दुख दाई होता है “
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आज मैं इस पहाड़ पर पूरा नही चड़ पाया क्योंकि मौसम खराब था तो याद आया की मैं जब अपने मन मैं जाने की कोशिश करता हूँ तो कुछ ऐसा ही होता है मौसम खराब हो जाता है और मुझे वापस आना पड़ता है पर मैंने सोचा है की इस बार वापिस नही आऊंगा जब तक चढ़ नहीं जाता ऊपर तक क्योंकि ऊपर चढने मे गर्मी पैदा होगी जो जमी हुई बर्फ को पिघला देगी और मैं धीरे-धीरे फिर से बहने लगूंगा।
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बस अब मैं यही चाहता हूँ की तुम भी पहाड़ छोड़ कर बस नदी हो जाओ ताकी जो ये मैं हूँ छोटा सा झरना जो जम गया है जब पिघले तो तुम में आ कर मिल जाए और हम फिर से एक नया सफर शुरू कर सके क्योंकि तुम्हे भी जीवन के आयाम का सफ़र करना है। तो हम एक बार पहाड़ बन चुके पत्थर बन चुके अब नदी बनते हैं !